Friday, January 29, 2010




 ख्वाहिश ......
वो नींद की हल्की साज़िश थी
या दिल की कोई ख्वाहिश थी
जब मैंने तुमको देखा था
जब मैंने तुमको जाना था
तुम दूर हो कर भी पास हुए
इन आँखों का एक ख्वाब हुए
तुमसे जब जब मैं मिलती हूँ
तो हर दम सोचा करती हूँ
कोई ख्वाब हो या एक आस हो तुम
मेरे होने का एहसास हो तुम
सच में गर तुमसे कह दूं मैं
शायद अब सबसे खास हो तुम
तुम न जाना अब दूर कहीं
मेरे बनके रहना सदा यूँही
एक खुशबु हर सू फैली है
रंगों मैं अब रंगीनी है
शबनम की बूँदें पत्तो पर
गिर कर मुझसे ये कहती हैं
वो नींद की हल्की साज़िश थी
या दिल की कोई ख्वाहिश थी

2 comments:

  1. gr888888 yar isme to kamal kar diya tumne GHAZAB ka likha hai.....really pichli wali se zyada achi hai ye..aise hi likhti raho aur hum pdhte rahein.

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  2. बहुत खूब...आपकी ये कविता दिल तक पहुची है...
    सच में भावात्मक रचना है...
    शायद ये दिल की ख्वाहिश ही थी...

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It's true the moment I saw you, i knew you were the one. Your heart was fire, like magic, an arrow shot from a gun. Your eyes, ...