Thursday, February 4, 2010

ज़िन्दगी

एक बार ज़िन्दगी ने यूँ रुक के मुझसे पुछा
में कौन हूँ बता दे, एक रात या सवेरा
कोई ख्वाब मुझको कहता, कोई चांदनी बताता
कोई है खफा खफा सा और बेवफा है कहता
मैंने सदा ही सबको जीना तो है सिखाया
बदले में कुछ ना खोया और न ही कुछ है पाया
फिर भी सभी को मुझसे हर रोज़ शिकायत है
पहले बना के माझी, फिर कहते बगावत है
मैंने ज़रा ठहर के ये ज़िन्दगी से बोला
तू है बड़ी ही दिलकश, एक प्यारा सा है चेहरा
जो लोग हैं ये कहते, किसी काम की नहीं तू
उनको नहीं पता की हर ज़र्रे में बसी तू
कर्मो का बोझ अपने, कंधे पे तेरे डाले
खुद को सही हैं कहते, तुझको गलत बताते
जीने का ढंग तुझसे, एक बार सीख ले वो
फिर तू है सबसे बढ़के ये बात जान ले वो
ऐसा नहीं है उनको कोई बेरुखी है तुझसे
मायूसियाँ भी तुझसे और ताज़गी भी तुझसे
हालात का भरम वो सब तुझपे डालते हैं
खुशियों का घर है तू ही, ये भी वो जानते हैं
मत हो उदास ऐसे, बस काम कर तू अपना
तू है दिलो का संगम, आगे है तुझको बढ़ना
मुश्किल है अहमियत, लफ्ज़ो में तेरी बताना
एहसास है सभी को, चाहे ना कोई जताना
सब लौट फिर के वापस आते हैं तेरे पास
फिर क्यूं खड़ी है गुमसुम, और क्यूं है तू उदास
बढ़ती जा तू आगे और सबको आज़माले
ग़मगी हो, शादमा हो, सबको गले लगाले

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