शब्द
अक्सर मन के किसी कोने में
दफन हो जाती हैं छोटी सी आरज़ू
होठो की खामोशी, उन का गला घोट देती हैं
और फिर में सोचती हूँ ऐसा क्यूं हुआ
मन की दीवारों से टकराकर
चीखने पर भी
वो नहीं सिद्ध कर पाते अपनी सच्चाई
और एक दिन मर जाते हैं
बिना अपनी पहचान बनाए
अक्सर मैं और मेरे शब्द
दूर बादलो मैं जा कर कहीं छिप जाते हैं
ये शब्द बस ये शब्द....
अक्सर मन के किसी कोने में
दफन हो जाती हैं छोटी सी आरज़ू
होठो की खामोशी, उन का गला घोट देती हैं
और फिर में सोचती हूँ ऐसा क्यूं हुआ
मन की दीवारों से टकराकर
चीखने पर भी
वो नहीं सिद्ध कर पाते अपनी सच्चाई
और एक दिन मर जाते हैं
बिना अपनी पहचान बनाए
अक्सर मैं और मेरे शब्द
दूर बादलो मैं जा कर कहीं छिप जाते हैं
ये शब्द बस ये शब्द....